गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

ब्रह्म नाद

ब्रह्म नाद

वहां दिव्य संगीत बज रहा था।
उस संगीत में सभी ध्वनि विलीन थीं।
अन्य ध्वनि के अस्तित्व की कोई गुंजाइश नहीं थी।
ध्वनि तीव्र थी लेकिन मन और अस्तित्व को रमा देने वाली थी।
मैं तो अनायास ही वहां पहुंच गया था।
बल्कि वानर की तरह दिखने वाला मानव प्राणी। 
मुझे जबरन उधर ले गया था।
वहां सभी नृत्य कर रहे थे उस ध्वनि के साथ।
सभी के सिर पर स्वर्ण मुकुट थे।
सभी के शरीर से स्वर्णाभा युक्त प्रकाश निकल रहा था।
मैं उन की भीड़ में मिलकर उस ध्वनि में नृत्य करने लगता हूं।
मैं बोलने का प्रयास करता हूं, लेकिन उस संगीतमय ध्वनि के अलावा वहां किसी के अन्य ध्वनि लिए कोई गुंजाइश नहीं थी।

बुधवार, 3 अगस्त 2022

स्वप्न मृत्यु

स्वप्न मृत्यु

वह शायद कोई तीर्थ स्थान था,
लोगों की बहुत भीड़ थी,
सभी पंडाल में बैठे हुए थे,
किसी प्रवचन कर्ता  गुरु की प्रतीक्षा में,
सभी उत्साहित नजर आ रहे थे,
मैं सबसे आगे की तरफ था,
मेरा मुख मंच से श्रद्धालुओं की और था,
मैं श्रद्धालुओं के उत्साह को तटस्थ भाव से देख रहा था, 
तभी गुरु मंच पर आता है, 
उसके सेवक मंच के नीचे खड़े हो जाते हैं, 
मैं साइड में खड़ा हुआ था, 
पूरी स्थितियों का प्रश्न वाचक भावों के साथ आकलन कर रहा था,
मेरी उस गुरु में न कोई श्रद्धा है न ही अश्रद्धा,
बस यूं ही मैं उसकी बातों को सुने जा रहा हूं, 
मैंने उसके सहायकों से पूछा, गुरु जी का क्या नाम है? तो उन्होंने कोई नाम बताया, जिसके पीछे 'असुर' लगा हुआ था,
मैं मुस्कुराया, उसके चेहरे पर बड़ी-बड़ी मूछें और दाढ़ी थी, चेहरे में गंभीर रौद्रता थी।
प्रवचन खत्म होता है, 
वह गुरु अपने साथ चलने के लिए कहता है।
मुझसे पूछता तुम्हें क्या चाहिए,
मैंने कहा कुछ नहीं,
वह जल्दी में था, शायद।
वह मुझे एक बुजुर्ग स्त्री के पास भेज देता है, 
मैं बिना मन उत्साह के उसे स्त्री के पास चला जाता हूं,
उसके सफेद वस्त्र थे, चेहरे से प्रकाश निकल रहा था,
वह मुझसे पूछती है तुम्हें क्या चाहिए?
मैंने उल्टा सवाल किया आप मुझे क्या दे सकते हो? 
उसने जवाब दिया अब इस जीवन में तुम्हारा कुछ बचा नहीं है,
तुम्हारा अच्छा, बुरा सभी पूर्ण हो चुका है
मैंने कहा मुझे उम्मीद भी नहीं है, 
फिर मैंने कहा क्या मुझे आत्मबोध हो सकता है,
मैंने उत्तर का इंतजार किए बिना, 
मैंने पूछा मुझे मृत्यु तो मिल सकती है न,
उस प्रकाशित बुजुर्ग महिला ने बिना कोई उत्तर दिए अपने अंगूठे को मेरे माथे के बीच में लगा दिया, 
मेरा पूरा शरीर कांपने लगा, लेकिन मैं निर्भिक था, कोई डर नहीं, 
मेरा पूरा शरीर प्रकाश से भर गया, और एक प्रकाश मेरे शरीर से निकलकर सूर्य के अगाध प्रकाश में मिल गया, 
मैंने अद्वितीय शांति महसूस की, 
मेरा हृदय प्रसन्नता से भरा हुआ था। मैंने अपनी मुक्ति अनुभव की। मैं मरकर मृत्यु से परे चला गया था।

ashish kumar